आचार्य हृदयम् – ३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – २ अवतारिका (परिचय) यहाँ यह बताया है कि क्या त्यागना होगा और क्या गृहण करना है। चूर्णिका ३ त्याज्योपादेयङ्गळ् सुक दुक्कङ्गळ् सामान्य व्याख्या  सुख को स्वीकारना है और दु:ख को‌ त्यागना है। व्याख्यान (टीका टिप्पणी) इसका अर्थ … Read more

आचार्य हृदयम् – २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १ अवतारिका (परिचय) ऐसे विवेक (अन्तर करने की क्षमता) का फलस्वरूप यहाँ समझाया है। चूर्णिका-२ विवेक पलम् वीडु पट्रु सामान्य व्याख्या यह भेद करने की क्षमता का फल है कि त्यागने के योग्य का त्याग करना और … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ६० – निष्कर्ष

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << परमपद धाम की ओर लौटना  नम्माऴ्वार् अपने तिरुवाय्मोऴि में वर्णन करते हैं, “कण्णन् कऴल् इनै नण्णुम् मनम् उडैयीर् ऎण्णुम् तिरुनामम् तिण्णम् नारणमे।” इसका तात्पर्य है कि जो लोग कृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति करना चाहते हैं उनको “नारायण” का ध्यान … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५९ – परमपद धाम की ओर लौटना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << वैदिक पुत्रों को लौटाना कृष्ण इस भौतिक संसार में सहस्र वर्ष तक रहे और बहुत लोगों का कल्याण किया। तत्पश्चात् उन्होंने दिव्य तेजोमय निजधाम जाने का निश्चय किया। आइए देखते हैं कि कैसे परमपद गये। महाभारत युद्ध के पश्चात् धृतराष्ट्र की … Read more

आचार्य हृदयम् – १

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << अवतारिका अवतारिका(परिचय) प्रथम चूर्णिका में जैसे कि श्रीरङ्गराज स्तवम में वर्णन किया है, “हर्तुं तमस् सदसती च विवेक्तुमीशो मानं प्रदीपमिव कारुणिको ददाति। तेनावलोक्या कृतिन: परिभुञ्जते तं तत्रैव केऽपि चपलाः शलभीभवन्ति।।” (एम्पेरुमान् जो कृपा सिंधु हैं वे वेद प्रदान करते हैं … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५८ – वैदिक के पुत्रों को लौटाना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << परीक्षित को शुभकामनाएँ कृष्ण श्री वैकुंठ से एक वैदिक (ब्राह्मण) के पुत्रों को कैसे वापस लाए, आइए इसका‌ आनंद लें। एक बार कृष्ण और अर्जुन, कृष्ण के निवास स्थान पर बैठे थे, तभी एक ब्राह्मण दु:खी अवस्था में वहाँ पहुँचा। … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५७ – परीक्षित को शुभकामनाएँ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << महाभारत युद्ध – भाग ३ युद्ध समाप्त हो गया और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक स्वयं कृष्ण की देखरेख में हुआ और पुनः द्रौपदी और पांडवों के लिए सभी प्रकार की शुभकामनाएं आई। युद्ध के समय अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। … Read more

कष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५६ – महाभारत युद्ध – भाग ३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << महाभारत युद्ध – भाग २ कृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ योद्धा द्रोण को मारने की विधि पांडवों को सिखाई। द्रोण को अपने पुत्र अश्वत्थामा से बहुत प्रेम था। यदि वह मारा गया तो द्रोण स्वयं ही शक्तिहीन हो जाएगा। परन्तु वह चिरञ्जीव … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५५ – महाभारत युद्ध – भाग २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << सहस्रनाम भीष्म की पराजय के पश्चात्, द्रोण कौरवों के सेनापति बने। भीषण युद्ध में बहुत योद्धा मारे जा रहे थे। भीष्म ओर हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच युद्ध के मैदान में आया और कौरवों की सेना के लिए एक बहुत बड़ा भय … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५४ – सहस्रनाम

श्री:श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << महाभारत युद्ध -भाग १ महाभारत में कृष्ण द्वारा दिया गया श्रीगीतोपदेश के जैसे सहस्रनाम की भी महिमा है जो कृष्ण की महानता को दर्शाती है। आइए श्रद्धापूर्वक आनन्द लें। कृष्ण की आज्ञानुसार अर्जुन ने भीष्म पितामह को शरशैय्या पर लिटाया परन्तु … Read more