श्रीवचन भूषण – सूत्रं २५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं “यदि प्रपत्ती के लिए ऐसे प्रतिबंध नहीं हैं, तो किस प्रक्रिया में ऐसे प्रतिबंध हैं?” सूत्रं – २५ कर्मत्तूक्कु पुण्य क्षेत्रम्, वसन्तादि कालम्, शास्त्रोक्तङ्गळान तत्तत् प्रकारङ्गळ्, त्रैवर्णिकर् ऎन्ऱु … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं २४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला << पूर्व अवतारिका यह पूछे जाने पर कि “यदि ये प्रतिबंध नहीं हैं, तो क्या अन्य प्रतिबंध भी हैं?” सूत्रं – २४ विषय नियममे उळ्ळदु सरल अनुवाद एकमात्र प्रतिबंध यह है कि प्रपत्ती किसके प्रति की जाती है। व्याख्यान अर्थात् – … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं २३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला पूर्व अवतारिका इसके पश्चात, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक प्रपत्ति की प्रकृति की व्याख्या कर रहे हैं जो कि उपाय (भगवान) की खोज है और जिसे संयोग से उनके द्वारा सूत्र २२ “प्रपत्ति  उपदेशम्  पण्णिट्रुम्” में उजागर किया गया है। उसमें, सबसे … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं २२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपाकर समझाते हैं कि भगवान ने क्यों छोटी-छोटी सेवाएँ कीं और ऐसे अर्जुन के लिए प्रपत्ति का निर्देश दिया जो मारे जाने के योग्य था। सूत्रं – २२ अर्जुननुक्कु दूत्य सारथ्यङ्गळ् पण्णिट्रुम् प्रपत्युपदेशम् पण्णिट्रुम् इवळुक्काग। सरल अनुवाद … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं २१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस दोष की निर्दयता को समझाते हैं।  सूत्रं – २१ पाण्डवर्गळैयुम् निरसिक्क प्राप्त्यमायिरुक्क वैत्तदु द्रौपदियुडैय मङ्गळ सूत्रत्तुक्काग  सरल अनुवाद जबकि उसे पांडवों को भी मारना चाहिए था, उसने द्रौपदी के मंगलसूत्र के लिए उन्हें जीवित छोड़ … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं २०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला << पूर्व अवतारिका यहाँ तक कि ये (पिछले सूत्र में उल्लिखित) भी प्राथमिक दोष नहीं हैं; प्राथमिक दोष एक अलग है। सूत्रं – २० द्रौपदी परिभवम् कण्डिरुन्ददु कृष्णाभिप्रायत्ताले प्रधान दोषम् सरल अनुवाद भगवान श्रीकृष्ण की राय अनुसार द्रौपदी के अपमान के समय … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला << पूर्व अवतारिका यद्यपि अर्जुन का दोष राक्षसियों जितना लोकप्रिय नहीं है, और वह अच्छे गुणों वाला माना जाता है, फिर भी उसमें दोष क्या है?  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी यह प्रश्न उठाते हैं और उनका दोष दिखा रहे हैं। सूत्रं – … Read more

आचार्य हृदयम् – १४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १३ अवतारिका (परिचय) इस चूर्णिका में इस प्रश्न का समाधान किया गया है कि, “यदि भगवान सभी आत्माओं के साथ निज सम्बन्ध के कारण शास्त्रों का प्रकटीकरण कर रहे हैं, तो केवल मोक्ष की ओर ले जाने वाले शास्त्र का ही … Read more

आचार्य हृदयम् – १३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १२ अवतारिका (परिचय) नायनार का कहना है कि भगवान और आत्मा के मध्य सम्बन्ध शास्त्र प्रदानम् (शास्त्र प्रदान) करना है। चूर्णिका – १३ इन्द उदरत्तरिप्पु त्रैगुण्य विषयमानवट्रुक्कु प्रकाशकम्। सामान्य व्याख्या इस सम्बन्ध के कारण ही भगवान ने शास्त्र (वेद) प्रदान किया। … Read more

आचार्य हृदयम् – १२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ११ अवतारिका (परिचय) यहाँ पर इस शंका का निवारण किया गया है कि, “क्या (अचित और भगवद् सम्बन्ध) ये दोनों सम्बन्ध जो अनादिकाल से हैं आत्मा के लिए स्थायी हैं?” चूर्णिका १२ ऒन्ऱु कूडिनदाय्प् पट्रऱुक्क मीण्डु ऒऴिगैयाले … Read more