श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा जाता है कि, “ये सब मोह के कारण घटित हुए हैं; जो कुछ अज्ञान/मोह के कारण घटित होता है वह वांछित नहीं है। तो ये कैसे वांछित हैं?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक उत्तर देते हैं। … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका वैकल्पिक रूप से, भले ही ऐसा कार्य (भगवान के लिए अपने जीवन का त्याग करना) साधन का अंश माना जाता है जबकि यह व्यक्ति के अनन्योपायत्व (किसी अन्य साधन में संलग्न न होना) को नष्ट कर देगा लेकिन यह … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा जाता है कि, “अन्य अनुष्ठानों के विपरीत जो उपाय और उपेय के लिए निर्धारित हैं, यह [भगवान के लिए शरीर त्यागना] शास्त्रों में उपाय के रूप में निर्धारित किए जाने के कारण, और अनन्य साधन (जिसे … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा जाता है कि, “इस प्रकार, इसे [अपने शरीर को त्यागने को] साधन मानने के बजाय, क्या कोई भगवान के प्रति अत्यधिक प्रेम के कारण अपने शरीर को त्यागने की स्थिति तक पहुँच जाएगा?” तो श्रीपिळ्ळै … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी समझाते हैं कि इसका क्या अर्थ है, “जब यह (भगवान तक पहुँचने के साधन के रूप में अपने शरीर को त्यागना) नियम के रूप में आता है तो इसे पूरी तरह से त्यागना पड़ता है और … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका यहाँ एक प्रश्न आता है।  शास्त्र में समझाया गया है कि स्व इच्छा से भगवान की सेवा के लिये अपने शरीर का त्याग करना भी भगवान तक पहुँचने का एक उपाय है। अर्थात जिसे यहाँ देखा जाता हैं  एक … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका इस प्रकार, उपाय (साधन) और उपेय (लक्ष्य) के आदर्श स्वरूप व्यक्तित्वों के विषय में बताने के पश्चात, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक उन जैसे बने रहने के लिए कहने का आशय समझाते हैं। सूत्रं – ८५ उपायत्तुक्कु शक्तियुम् लज्जैयुम् यत्नमुम् … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका कोई विशेष परिचय नहीं ।  सूत्रं – ८४ पेरिय उडैयारुम् पिळ्ळै तिरुनऱैयूर् अरैयरुम् उडुम्बै उपेक्षित्तार्गळ्; चिन्तयन्तिक्कु उडम्बु तन्नडैये पोय्त्तु। सरल अनुवाद  जटायु महाराज और पिळ्ळै तिरुनऱैयूर् अरैयर् ने अपना शरीर त्याग दिया; चिन्तयन्ति के लिए वह  शरीर अपने आप … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका अब, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी लक्ष्मणजी के स्वभाव को विस्तारपूर्वक समझा रहे हैं, जो उनमें अग्रणी हैं जो उपेय (कैंकर्य) में स्थित होने के आदर्श हैं। सूत्रं – ८३ पसियराय् इरुप्पार् अट्ट सोऱुम् उच्च वेणुम् अडिगिऱ सोऱुम् उण्ण वेणुम् ऎन्नुमाप्पोले,‌काट्टुक्कुप् … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक ऐसे महानुभावों के कार्यों का वर्णन करते हैं। सूत्रं – ८२ पिराट्टि स्वशक्तियै विट्टाळ्, द्रौपदि लज्जैयै विट्टाळ्, तिरुक्कण्णमङ्गै आण्डान् स्वव्यापारत्तै विट्टान्। सरल अनुवाद  श्रीमहालक्ष्मी ने अपनी क्षमता त्याग दी, द्रौपदी  ने अपनी लज्जा त्याग दी … Read more