श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
कुवलयापीड नामक हाथी के वध के पश्चात्, श्रीकृष्ण और बलराम ने मल्लयुद्ध के मैदान में प्रवेश किया। उस समय योद्धा, स्त्री पुरुष सभी विस्मय हो उनको उपस्थित महानुभाव उनके दिव्य तेज को देखकर उनके दिव्य स्वरूप को जान गये।
वे योद्धा विशाल और बलशाली शरीर वाले थे। चाणूर ने श्रीकृष्ण और बलराम को मल्ल युद्ध के लिए आमंत्रित किया। जबकि चाणूर मुष्टिक आदि बलशाली मल्लयोद्धाओं को श्रीकृष्ण और बलराम की दिव्यता का ज्ञात था। तब भी उन्होंने अपनी मनसा के विरुद्ध युद्ध प्रतियोगिता में भाग लिया। उनका विचार था,”कायर बनकर, युद्ध में पीठ दिखाने पर और कंस के हाथों मृत्यु को प्राप्त होने से तो अच्छा है कि श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों से मृत्यु को प्राप्त होना चाहिए। श्रीकृष्ण और बलराम तो छोटे बालक थे। उनके प्रति प्रेम जागृत हो जाने के कारण वहाँ उपस्थित लोग यह सोचकर भयभीत थे कि इस युद्ध में प्रतिद्वंद्वियों में असमानता है।
श्रीकृष्ण ने चाणूर से और बलराम ने मुष्टिक से युद्ध किया और दोनों मल्लयोद्धाओं को मृत्यु प्राप्त हुई। श्रीकृष्ण और बलराम ने अन्य योद्धाओं का भी वध कर दिया जो उन पर प्रहार करने आए थे। यह सब देखकर वहाँ उपस्थित लोग प्रसन्न हुए। परन्तु कंस बहुत भयभीत हो गया क्योंकि उसके हाथी, महावत और मल्लयोद्धाओं का वध हो गया था।
जैसे श्रीकृष्ण और बलराम ने मल्लयोद्धाओं को पराजित किया, इस लीला को आऴ्वारों ने कई पासुरों में वर्णित किया है। पेरियाऴ्वार् ने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में कहा, “एविट्रुच् चॆय्वान् ऎन्ऱॆदिर्न्दु वन्द मल्लरै सावत् तगर्त्त सान्दणि तोळ् चदुरन्,” (कंस के आदेशानुसार युद्ध करने के लिए आए मल्लयोद्धाओं का श्रीकृष्ण ने चतुराई से विनाश कर दिया, श्रीकृष्ण के दिव्यमङ्गल अङ्गों पर लगे चन्दन के लेप के बिना हिले)। आण्डाळ् नाच्चियार् तिरुप्पावै में कहतीं हैं, “मल्लरै माट्टिय देवादि देवन्” (देवताओं के स्वामी जिन्होंने मल्लों का वध किया)। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मॊऴि में कहते हैं, “निगरिल् मल्लरैच् चॆट्रदुम्” (अविजित मल्लों का वध किया)। तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने अपने तिरुनेडुन्दाण्डगम् में कहा, “मल्लडर्त्तु मल्लरै अन्ऱु अट्टाय्” (मल्लों के साथ लड़ना और पहले ही उनका वध कर देना)
सार:-
- जबकि भगवान गोपकुल में साधारण मानव रूप में प्रकट हुए और एक छोटे बालक के रूप में होते हुए भी उनकी दिव्य क्षमता थी। वे अपने शत्रु को बिना परिश्रम से परास्त कर देंगे।
- जबकि शत्रु भी, जब भगवान की दिव्यता, महानता को जानेंगे तो उनसे युद्ध कर मृत्यु को प्राप्त करने में सौभाग्य समझेंगे।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/06/krishna-leelas-29-english/
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