श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

पूरी श्रृंखला

<< पूर्व

अवतारिका

कोई विशेष परिचय नहीं

सूत्रं – ५८

उपायान्तरम् इरण्डैयुम् पॊऱुक्कुम्।

सरल अनुवाद 

अन्य उपाय दोनों (स्वयं और दूसरों) को सहन करेंगे।

व्याख्या

उपायान्तरम् इरण्डैयुम् पॊऱुक्कुम्

अन्य उपाय जो साध्योपाय के रूप में जाने जाते हैं (उपाय व्यक्तिगत प्रयास से प्रकट होता है) और सिद्धोपाय (भगवान जो सुलभ से उपलब्ध हैं) से भिन्न हैं, उन लोगों के लिए जो भगवान पर अपनी कुल निर्भरता के बारे में ज्ञान से रहित हैं और आत्म-प्रयास में लगे हुए हैं। क्योंकि इन्हें शास्त्र (वेद) में उपाय के रूप में वर्णित किया गया है,  वे स्वयं को सहन करेंगे,  और क्योंकि उन्हें अस्तित्व में आने के लिए पूर्व-अपेक्षित कार्यों की आवश्यकता होती है  इसलिए वे अन्यों को भी सहन करेंगे जो स्वयं से भिन्न हैं। लक्ष्मी तन्त्रम् में कहा गया है “भक्त्या लभ्यस् त्वनन्यया”  (वह केवल शुद्ध भक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है), आत्म सिद्धि में “उभय परिकर्मिता स्वान्तस्य अकान्तिकात्यन्तिका भक्ति योगैग लभ्यः”  (भगवान् भक्तियोग द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं, जो कि कर्मयोग और ज्ञानयोग से सुशोभित शुद्ध हृदय वाले व्यक्ति द्वारा बिना किसी अन्य अपेक्षा के प्राप्त किया जा सकता है), लघ्वत्रि स्मृति में “जन्मान्तर सहस्त्रेषु तपोध्यान समाधिभिः । नराणां क्षीण पापानां कृष्णे भक्ति प्रजायते।।” (सहस्त्र जन्मों में तप के रूप में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग के कारण मनुष्यों के पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्ति उत्पन्न होती है)।

अडियेन् केशव रामानुज दास 

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/03/09/srivachana-bhushanam-suthram-58-english/

संगृहीत- https://granthams.koyil.org/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment