कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ७ – माखन चोरी करना और पकड़े जाना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << यशोदा द्वारा कृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन नम्माऴ्वार (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुविरुत्तम् में वर्णित करते हैं “सूट्टु नन्मालैगळ् तूयनवेन्दि विण्णोर्गळ् नन्नीराट्टि अन्दूबम् तरा निऱ्–कवे अङ्गु ओर् मायैयिनाल् ईट्टिय वॆण्णै तॊडु उण्णप्पॊण्दुमिलेट्रुवन् कून् कोट्टिडैयाडिनै कूत्तु अडलायर् तम् कॊम्बिनुक्के” कि … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ६ – यशोदा द्वारा कृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << तृणावर्त उद्धार (वध) बालक कृष्ण और बलराम अब बहुत अच्छे से (घुटरूं) घुटनों के बल चलने लगे। वे घुटनों के बल चलते हुए, (रेंगते हुए) मिटृटी में खेले, और अपनी माताओं यशोदा माता व रोहिणी माता के पास लौट गए, उनकी … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५ – तृणावर्त उद्धार (वध)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << शकटासुर वध आइए अब हम श्रीकृष्ण के (भूमिपर) बैठने की मुद्रा में की गई लीला को जानें। गोकुल में, एकबार कृष्ण भूमि पर बैठे थे। कंस के द्वारा भेजा गया एक तृणावर्त नामक दैत्य वहाँ आया। वह एक विशाल बवंडर रूप … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४ – (शकटासुर वध) शकट भञ्जन और उत्कच राक्षस का उद्धार

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << पूतनावध बालकृष्ण के पालने में सोते समय की एक और लीला शकटासुर का वध है। आऴ्वारों ने कई स्थानों पर आनन्द पूर्वक वर्णन किया है। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) ने इस लीला का आनन्द पूर्वक अनुभव करते हुए कहा है “तळर्न्दुम् … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ३ – पूतनावध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << सारांश श्रीकृष्ण का श्रीगोकुल में बहुत अच्छे से पालन-पोषण किया जा रहा था। माता यशोदा, श्रीनन्दगोप और गोपाङ्गनाऐं विधिपूर्वक रक्षा कर रहीं थीं। किसी प्रकार से कंस को यह पता चल गया कि यही श्रीकृष्ण हैं जो उसका वध कर देंगे। … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उसका सार – २ – सारांश

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << जन्म पेरियाऴ्वार् (विष्णु चित्त स्वामी जी) ने माता यशोदा की मनःस्थिति में स्वयं को रखकर श्रीकृष्ण लीलाओं का आनन्द लिया और उसका चित्रण पासुरों के रूप में प्रस्तुत किया है। अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में कई पदिगमों (दशकों) में, उन्होंने श्रीकृष्ण की … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १ – जन्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला आऴ्वार्, जिन पर ज्ञान की दिव्य कृपादृष्टि जिसने परिपक्व हो कर भक्ति का रुप लिया, और आण्डाळ् नाच्चियार् (गोदा देवी), जो भूदेवी पिराट्टि (माता) के अवतार हैं, कृष्णावतारम् उत्सव को निम्नलिखित रूप में मनाते हैं:“आट्कॊळ्ळत् तोन्ऱिय आयर् तम् कोविनै” (वह जो हमें … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १७

 श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १६१– प्रणवार्थमुम् नमच्छब्दार्थमुम् व्यापकत्वमुम् अव्यापक्त्वमुम् अल्लाद व्यापक मन्दिरङ्गळिलुम् उण्डु। “ओ३म (ॐ)” का अर्थ है जीवात्मा भगवान का दास है। “नमः” का अर्थ है “मैं स्वयं का दास नहीं हूँ”। इनका और भगवान की सर्वव्यापकता का अन्य व्यापक … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियां – १६

 श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १५१ – शेषिक्कु अतिसयत्तै विळैक्कैये शेषवस्तुवुक्कु स्वरूपम्। शेषी-स्वामी/आदि, शेष वस्तु – दास/द्वितीय। एम्पेरुमान् सर्वोच्च स्वामी परमपिता परमात्मा हैं और जीवात्मा नित्य दास है। जीवात्मा की स्वाभाविक क्रिया भगवान की स्तुति करना है अनुवादक टिप्पणी – एम्पेरुमानार् … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ – १५

 श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १४१-तामस पुरुषर्गळोट्टै सहवासम् सर्वेश्वरनुक्कु त्याग हेतु। सत्वनिष्टरोट्टै सहवासम् ईश्वरनुक्कु स्वीकार हेतु। तामसिक (अज्ञानी) जनों का संग करने के कारण एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) ही हमें भटका देते हैं। और सात्विक (ज्ञानवान श्रीवैष्णव) जनों का संग करने से एम्पेरुमान् … Read more