यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः

मणवाळ मामुनि या श्रिवरवरमुनि स्वामीजी, आचार्य गुरुपरम्परा जो श्रिरङ्गनाथ भगवान से आरमभ होते हैं उस परम्परा के अन्तिम आचार्य मानेगये हैं। आचार्य श्रीशैलेष स्वामीजी से शास्त्र और प्रबन्ध सीखें और उनकी इच्छा अनुसार श्रिरङ्गम् में वास किये थे। श्रिरङ्गनाथ भगवान को श्रीवरवर मुनि स्वामीजी से ईडु कालक्षेप सुनने की इच्छा हुई (श्रीसहस्रगीति पर प्रवचन श्री वडक्कुत्तिरुवीदिप्पिळ्ळै द्वारा संकलित श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी के प्रवचन पर आधारित) और अपनी इच्छा पूर्ण करने हेतु भगवान श्रिरङ्गनाथ ने श्रिरङ्गम में सभी उत्सव १ वर्ष के लिए स्थगित कर दिया। भगवान ने कालक्षेप के अन्त में मंदिर के पण्डित के एक पुत्र के रूप लेकर श्रीवरवर मुनि स्वामीजी को अप्नि आचार्य के रूप में स्वीकारित कर्के उन्कि सम्मान मे तनियन कि रचना किये हैं। १६वीं शताब्दी के अन्त में श्रीपिळ्ळै लोकम् जीयर् स्वामीजी ने श्रीवरवर मुनि स्वामीजी के यश में यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् नामक एक ग्रन्थम् लेखे हैं। यतीन्द्र शब्द भगवद रामानुज स्वामीजी को संभोधित है जो सन्यासीयों के राजा माने गये हैं। श्रीवरवर मुनि स्वामीजी को भगवद रामानुज स्वामीजी के अपरावतार माना गया हैं और उन्के स्नेह श्रीरामानुज स्वामीजी के प्रति अधिक गहरा था। पिळ्ळै लोकम् जीयर् ने ऐसे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के यश को अपने कार्य में लिखे हैं। आनेवाले दिनों में हम इनके लेख के गुढ़ार्थ गुण का अनुभव करेंगे और इसके द्वारा पोय्यिल्लाद​ (वो जो कुछ भी गलत वर्णन नहीं करते हैं) मणवाळ मामुनिगळ् के यश का अनुभव करेंगे।

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अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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