श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उस विरोधाभास को दर्शा रहे हैं जो तब उत्पन्न होगा जब उनके द्वारा पहले समझाया गया सिद्धांत स्वीकार नहीं किया जायेगा। सूत्रं – १०९ इप्पडिक् कॊळ्ळादप्पोदु, गुणहीनमॆन्ऱु निनैत्त दशैयिल् भगवत् विषय प्रवृत्तियुम्, दोषानुसंधान दशैयिल् सम्सारत्तिल् … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया कि “जैसा कि मून्ऱाम् तिरुवन्दादी १४ में कहा गया है “मऱ्-पाल् मनम् सुऴिप्प मङ्गैयर् तोळ् कै विट्टु नूऱ्-पाल् मनम् वैक्क नॊय्विदम्” (जैसे ही हृदय श्रीमन् नारायण की ओर उन्मुख होता है, स्त्रियों के कंधों के प्रति आसक्ति … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया “प्राथमिक कारण क्या है?” श्रीपिळ्ळै  लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं “अप्राप्ततैये प्रधान हेतु“। सूत्रं – १०७ अप्राप्ततैये प्रधान हेतु सरल अनुवाद अयोग्यता ही इसका मुख्य कारण है। व्याख्या अप्राप्ततैये एक चेतन (जीव) के स्वरूप अर्थात केवल  भगवान … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा गया कि, “क्या यही (सांसारिक सुखों के दोषों को देखना) अरुचि का मुख्य कारण है?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक समझाते हैं। सूत्रं – १०६ अदु प्रधान हेतु अन्ऱु। सरल अनुवाद यह प्राथमिक कारण नहीं है। … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका भगवान के विशिष्ट स्वभाव के कारण मनुष्य सांसारिक सुखों से अनभिज्ञ हो सकता है; विश्वस्त वृद्धों के उत्तम आचरण का ध्यान करने से मनुष्य विहित और निषिद्ध सुखों के प्रति भयभीत हो सकता है; किन्तु सदा भोगने वाले सांसारिक … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं कि सौंदर्य आदि तीन प्रकार के प्रपन्नों की विरक्ति का कारण है। सूत्रं – १०४ इवैयुम् ऊट्रत्तैप् पट्रच् चॊल्लुगिऱदु। सरल अनुवाद यह भी प्रत्येक विषय की प्रधानता के आधार पर कहा गया है। … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी एक जिज्ञासु व्यक्ति के प्रश्न का समर्थन करते हैं कि, “इन कारणों से (पिछले सूत्र में बताया गया है) यह वैराग्य कैसे उत्पन्न होता है?” और कृपापूर्वक इसका उत्तर समझाते हैं। सूत्रं – १०३ पिऱक्कुम् क्रमम् … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक इस शंका का उत्तर दे रहे हैं कि, “कर्तव्य समझकर जिन कार्यों को करने की अनुमति है, उनका त्याग तभी होगा जब यह विचार त्याग दिया जाए कि वे आनंददायक हैं; ऐसी स्थिति में, जो … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी प्रपन्नों के लिये ऐसे महत्त्व को समझाते हैं। सूत्रं – १०१ मट्रै इरुवर्क्कुम् निषिद्ध विषय निवृत्तिये अमैयुम्; प्रपन्ननुक्कु विहित विषय निवृत्ति तन्नेट्रम्। सरल अनुवाद अन्य दो के लिए (जो सांसारिक सुखों की चाह रखते हैं और … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १००

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं, “यद्यपि ये तीनों प्रकार के व्यक्तित्वों के लिए वांछनीय हैं, तथापि इनका प्रपन्न में उपस्थित होना अन्य की अपेक्षा अधिक आवश्यक है”। सूत्रं – १०० मूवरिलुम् वैत्तुक्कॊण्डु मिगवुम् वेण्डुवदु प्रपन्ननुक्कु। सरल अनुवाद इन तीनों … Read more