श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक इसका कारण बताते हैं। सूत्रं – १२८ औषध सेवै पण्णादवर्गळुक्कु अभिमत वस्तुक्कळिले अत्तै कलसि इडुवारैप्पोले, ईश्वरनैक् कलन्दु विधिक्किऱदित्तनै। सरल अनुवाद जिस प्रकार लोग उन लोगों को प्रिय खाद्य पदार्थों में मिलाकर औषधि खिलाते हैं जो … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका इन अन्य साधनों में दोष हैं जैसे कि स्वयं की वास्तविक प्रकृति के विरोधाभासी होना आदि, वेदान्तों द्वारा चेतनों के लिए मोक्ष प्राप्त करने के उचित साधन के रूप में जोर दिया गया है जो आत्मा की भलाई के … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उपायान्तर (अन्य साधन, मुख्य रूप से भक्ति योग) के लिए एक और दोष बता रहे हैं। सूत्रं – १२६ भर्तृ भोगत्तै वयिऱु वळर्क्कैक्कु उऱुप्पाक्कुमापोले, इरुवर्क्कुम् अवद्यम्। सरल अनुवाद जिस प्रकार पति को दिया गया सुख स्त्री … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया, “जिस प्रकार पुत्र गोदानम् के समय दक्षिणा समर्पित करता, जिसे उसने अपने पिता से प्राप्त किया, क्या उसी प्रकार आत्मा भगवान को कुछ अर्पित कर सकता है जो उसे पूर्व में भगवान से ही प्राप्त … Read more

श्री रामायण तनि श्लोकम् – ३ – बाल काण्ड १९.१४ – अहं वेद्मि – भाग २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री रंगदेशिकाय नम: पूरी श्रृंखला << भाग १ अहं वेद्मि महात्मानं रामं सत्यपराक्रमम् ।वसिष्ठोऽपि महातेजा ये चेमे तपसि स्थिताः ।। १.१९.१४ ।। वन में राक्षस ऋषियों को हिंसा करते हैं; वे रक्त, मांस आदि दूषित वस्तुओं को यज्ञों में डालकर यज्ञ करने में विघ्न डालते हैं। राक्षसों … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा गया कि “लेकिन हम भक्ति योग करके मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त कर सकते, जैसे अनमोल रत्न और राज्य पाने के लिए अतुलनीय समुद्री शंख और नींबू अर्पित किए जाते हैं?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं, “आत्मा … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्री पिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कह रहे हैं “इसके अतिरिक्त, अन्य उपायों (विशेष रूप से भक्ति योग) के लिए एक और दोष है जिसका नाम है फल विसदृशत्वम् (साधन परम पुरुषार्थ के लिए उपयुक्त नहीं है)”। सूत्रं – १२३ रत्नत्तुक्कु … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी एक आदरणीय पुरुष के शब्दों के माध्यम से उपायान्तरों (अन्य साधनों) की सबसे निषिद्ध प्रकृति को समझाते हैं जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप के लिए विनाशकारी हैं। सूत्रं – १२२ तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान् पणिक्कुम्बडि – मदिराबिन्दु मिश्रमान … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उस विरोधाभास को दर्शा रहे हैं जो तब उत्पन्न होगा जब पूर्व में बताए गए सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया जाएगा। सूत्रं – १२१ इप्पडिक् कॊळ्ळादप्पोदु एतत् प्रवृत्तियिल् प्रायश्चित्त विधि कूडादु।  सरल अनुवाद  जब इस प्रकार … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक अन्य उपायों से उत्पन्न होने वाले दोषों को समझाते हैं, जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप को नष्ट कर देते हैं। सूत्रं – १२० “वर्धते मे महत् भयम्” ऎन्गैयाले भयम् जनकम्; “मा शुचः” ऎन्गैयाले शोक जनकम्। … Read more