लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १९
श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १८१–रक्ष्य वर्गम् कुऱैवट्र देसमागैयाले रक्षकनुक्कु सम्पत्तु मिक्किरुक्कुम् इङ्गु। कैङ्कर्यत्तुक्कु विच्छेदमिल्लामैयाले सेष भूतनुक्कु सम्पत्तु मिक्किरुक्कुम् अङ्गु। भगवान इस संसार (भौतिक संसार) में जीवात्मा के उत्थान करके अपनी “रक्षकन” (रक्षक/उज्जीवित कर्ता) उपाधि स्थापित करने की खोज में हैं। जबकि असंख्य जीवात्माएँ … Read more