लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ – १५
श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १४१-तामस पुरुषर्गळोट्टै सहवासम् सर्वेश्वरनुक्कु त्याग हेतु। सत्वनिष्टरोट्टै सहवासम् ईश्वरनुक्कु स्वीकार हेतु। तामसिक (अज्ञानी) जनों का संग करने के कारण एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) ही हमें भटका देते हैं। और सात्विक (ज्ञानवान श्रीवैष्णव) जनों का संग करने से एम्पेरुमान् … Read more