यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ८०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७९ कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  और रामानुज दास ने यात्रा प्रारम्भ किये  जब चक्रवर्ती भगवान श्रीराम अपनी चरण पादुका भाई भरत को दिये तब लक्ष्मणजी को वें नहीं प्राप्त हुई। जब कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै जिनका दिव्य नाम लक्ष्मण हैं को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७८ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी उत्तर दिव्य देशों के भगवान का ध्यान करते हैं  फिर एक दिन सुबह श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकर श्रीशैलेश स्वामीजी के कालक्षेप मण्टप में जाते हैं और दिव्यदेशों का ध्यान करते हैं। एक कमजोर दिव्य मन के साथ वें करीब चार … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७७ तिरुमालिरुञ्चोलै के भगवान ने तनियन् का प्रचार प्रसार किया  एक जीयर् जिसका श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों से सम्बन्ध था वे तिरुमालिरुञ्चोलै के भगवान के सभी कैङ्कर्य​ कर रहे थे। वें निरन्तर अपने आचार्य श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के आत्मगुण और विग्रहगुण का … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७६ श्रीवेङ्कटेश​ भगवान इस तनियन् का प्रचार करते हैं  इस तनियन् से सम्बंधीत एक और अद्भुत बात हैं [श्रीशैलेश दयापात्रम् से प्रारम्भ कर और मणवाळमामुनिये इन्नमोरु नूट्ट्राण्डिरुम्  के अन्त तक]। तेन्नन् उयर् पोरुप्पु  (दक्षीण दिशा में दिव्य पहाड़ यानि तिरुमालिरुञ्चोलै) में तिरुमालिरुञ्चोलै … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७५ आश्चर्यजनक घटना जो अण्णन्  के तिरुमाळिगै में घटी  जब सभी जन मन्दिर में इकट्ठे हुए ईडु उत्सव के चाट्ट्रुमुऱै को देखने के लिये तब कन्दाडै अण्णन् कि धर्मपत्नी और अन्य महिलाएँ जिन्हें सम्प्रदाय का अच्छा ज्ञान था श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७४ भगवदविषय चाट्ट्रुमुऱै  पहिले के जैसे भगवान कृपाकर श्रीशठकोप स्वामीजी, श्रीपरकाल स्वामीजी, श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी और श्रीरामानुज स्वामीजी के साथ पधारे और अन्यों के साथ दिव्यप्रबन्ध के व्याख्यानों को सुने और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि प्रशंसा किये। उन्हें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव को … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७३ श्रीरङ्गनाथ भगवान श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को भगवद विषयम् पर कालक्षेप करने कि आज्ञा करते हैं  श्लोक के अनुरूप  ततः कदाचित् आहूय तमेनं मुनिपुङ्गवम्!सत्कृतं साधुसत्कृत्य चरणाब्ज समर्पणात्सन्नितौ मेनिषीतेति शशासमुरशासनःमहान्प्रसाद इत्यस्य शासनं शिरसावहन्तदैवत्र व्याख्यातुं तत्क्षणात् उपचक्रमेश्रीमति श्रीपतिस्स्वामि मण्टपे महतिस्वयम्तद्वन्तस्य प्रबन्दस्य व्यक्तन्तेनैव दर्शिनम्शठवैरिमुखैः श्रृण्वन् देशिकैर्दिव्यदर्शनैःअथ … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७२ जैसे की इन पाशुरों में कहा गया हैं वें प्रतिदिन अपने भाग्य कि महानता पर ध्यान करते जिसे उन्होंने प्राप्त किया था। जैसे कि श्लोक में उल्लेख किया गया हैं वह प्रतिष्ठित जनों कि दिव्य गोष्ठी कि पूजा करता रहा  अन्तः … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७१ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी आचार्य स्थानों में अपने प्रमुख शिष्यों को विराजमान कर अभिषेक किया  एक दिन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने श्रीप्रतिवादि भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी को बुलाकर कहा कृपाकर कन्दाडै अण्णन्, पोरेट्रु नायनार्, अनन्तैय्यनप्पै, एम्पेरुमानार् जीयर् नायनार् और कन्दाडै नायन् को श्रीभाष्य (व्यास महर्षि … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ७० श्रीपरकाल स्वामीजी का  मङ्गळाशासन्  करने के पश्चात श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने वयलाळि मणवाळन् (तिरुवालित तिरुनगरी में भगवान) जो श्रीपरकाल स्वामीजी को प्रिय थे कि पूजा किये। वें फिर दयाकर तिरुमणङ्गोल्लै (वह स्थान जहां भगवान ने श्रीपरकाल स्वामीजी को तिरुमन्त्र का उपदेश दिया … Read more