कृष्ण लीलाएँ और उनका सार

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

वेदों में कहा गया है “अजायमान: बहुधा विजायते”(जो जन्म नहीं लेता वह बहुत जन्म लेता है) भगवान (श्रीमन्नारायण), जिनको वेदों के द्वारा जाना जाता है, कहते हैं “बहूनिमे व्यथीतानि जन्मानि”(मैं भी बहुत जन्म ले चुका हूँ)। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) जो वैदिकों (वेदों का पालन करने वाले) में सर्वश्रेष्ठ हैं और उनको वेदों का सार ज्ञात है, कहते हैं “सन्मम् पल पल सेय्दु” (कई जन्मों की स्वीकृति लेते हैं)। इस प्रकार, भगवान विभिन्न अवतारों को स्वीकारते हुए वर्णन किया गया है। हम अपने कर्मानुसार कई बार जन्म लेते हैं और दु:ख भोगते हैं। परन्तु करुणामय भगवान हमारा उद्धार करने के लिए अवतरित होते हैं, अतः प्रत्येक जन्म में उनका तेज बढ़ता जाता है। इस सिद्धांत को शास्त्र और आऴ्वारों द्वारा उद्धृत किया है।

इन अवतारों में, दशावतारों की महिमा मुख्यतया प्रकट की गई हैं। तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने इसे एक पंक्ति में अद्भुत वर्णित किया है “मीनोडु आमै केऴल् अरि कुऱळाय् मुन्नुम् इरामनाय्त् तानाय्प् पिन्नुम् इरामनाय्त् तामोदरनुमाय्क् कऱ्‌-कियुम् आनान्” (एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) मत्स्य, कच्छप, जंगली शूकर, सिंह, बौने (वामन), परशुराम (प्रथम राम), स्वयं श्रीराम, बलराम (पश्चात् के राम), दामोदर, और कल्कि बने)। श्रीरामावतार और कृष्णावतार की महिमा का गान हमारे पूर्वजों द्वारा किया गया है। द्वापरयुग के अंत में होने के कारण जो हमारे समय के समीप है, इनमें से कृष्णावतारम् ने ऋषियों, आऴ्वारों और आचार्यों को बहुत अधिक आकर्षित किया है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से कोई आकर्षित न हो ऐसा कोई नहीं है। एम्पेरुमान् निरन्तर अद्भुत लीलाओं में संलग्न होते गए जो वज्र के समान हृदय को भी पिघला देंगी।

करुणामय श्रीकृष्ण श्रीभगवद्गीता में कहते हैं “जो मेरे जन्म की और लीलाओं की वास्तविकता समझते हैं, वे निश्चित ही मुझ तक पहुँचेंगे”। इसलिए हम श्रीकृष्णावतार को उनकी लीलाओं के अन्तर्निहित सिद्धांतो के सहित, श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंद में दिए गए क्रमानुसार, आने वाले दिनों में सरलता से अनुभव करेंगे।

  1. जन्म
  2. सारांश
  3. पूतनावध
  4. शकटासुर वध/शकट भंञ्जन
  5. तृणावर्तासुर का वध
  6. यशोदा द्वारा कृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन
  7. मक्खन चोरी करना और पकड़े जाना
  8. यमळार्जुन को श्राप से मुक्ति
  9. वृन्दावन को जाना, और असुरों का वध करना
  10. दधिपाण्डन् को आशीष प्राप्त होना
  11. अघासुर का वध
  12. ब्रह्मा का अभिमान दूर करना
  13. धेनुकासुर का वध
  14. कळिंग नर्दनम्
  15. प्रलम्बासुर का वध
  16. गायों और बछड़ों की देखभाल
  17. बांसुरी बजाना
  18. वस्त्र चोरी
  19. ऋषिपत्नियों को आशीष प्राप्त होना
  20.  गोवर्धन लीला
  21. रास क्रीडा 
  22. मटकों के साथ नृत्य करना
  23.  अरिष्टासुर, केशी और व्योमासुर का वध
  24. नप्पिन्नैप् पिराट्टि (नीळा देवी)
  25. कंस‌ का भयभीत होना और षड्यंत्र
  26. अक्रूर जी की यात्रा
  27. मथुरा में कृष्ण का आशीर्वाद और क्रोध
  28. कुवलयापीड हाथी का वध
  29. मल्लयोद्धाओं का वध
  30. कंस का वध
  31. देवकी और वसुदेव को बेड़ियों से मुक्त कराना
  32. सान्दीपनि मुनि के गुरुकुल में वास करना
  33. द्वारका निर्माण, मुचुकुन्द को आशीर्वाद देना
  34. रुक्मिणी कल्याणम्
  35. स्यमन्तक मणिलीला, जाम्बवती व सत्यभामा कल्याणम्
  36. प्रद्युम्न का जन्म और इतिहास
  37. खांडव वन का अग्निदहन, इंद्रप्रस्थ का निर्माण
  38. अन्य पाँच पत्नियाँ
  39. नरकासुर का वध
  40. बाणासुर का वध
  41. पौण्ड्रक और सीमालिका का वध
  42. द्वारका में जीवन और नारद जी का आनन्द
  43. जरासन्ध का वध
  44. शिशुपाल का वध
  45. शाल्व और दन्तवक्र का वध
  46. सुदामा का सत्कार
  47. द्रौपदी का कल्याण
  48. पांडव दूत – भाग १
  49. विदुर पर कृपा
  50. पांडव दूत – भाग २
  51. अर्जुन और दुर्योधन की सहायता
  52. गीतोपदेश
  53. महाभारत युद्ध – भाग १
  54. सहस्रनाम
  55. महाभारत युद्ध – भाग २
  56. महाभारत युद्ध – भाग ३
  57. परीक्षित को शुभकामनाएं
  58. वैदिक पुत्रों को लौटाना
  59. परमपद धाम की ओर लौटना
  60. निष्कर्ष

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

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