श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रीवादिभीकरमहागुरुवे नमः
“श्रीवैष्णवों को अपने दैनिक जीवन में कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इसका उपदेश श्रीरामानुज स्वामीजी ने वंगी पुरत्तु नम्बी को दिया। वंगी पुरत्तु नम्बी ने उसपर व्याख्या करके “विरोधी परिहारंगल (बाधाओं को हटाना)” नामक ग्रन्थ के रूप में प्रस्तुत किया। इस ग्रन्थ पर अंग्रेजी में व्याख्या श्रीमान सारथी तोताद्रीजी ने की है उसके आधार पर हम लोग हिन्दी में व्याख्या को देखेंगे। इस पूर्ण ग्रन्थ की व्याख्या को हम लोग “https://goo.gl/AfGoa9” पर हिन्दी में देख सकते है।
<– विरोधी परिहारंगल (बाधाओं का निष्कासन – ४६)
श्रीरामानुज स्वामीजी, श्रीवंगी पुरत्तु नम्बी
श्रीपिल्लै लोकाचार्य स्वामीजी, अलगिय मणवाल पेरुमाल नायनार, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी
अब तक हमने सभी बाधाओं को बहुत विस्तृत रूप से देखा है जिन्हें इस सुन्दर ग्रन्थ में समझाया गया है। अब हम अंतिम भाग के अनुवाद को देखेंगे जो सभी बाधाओं के बारें में ज़ोर देकर बताता है और उन्हें दूर करने के परिणामों के विषय में भी समझाता है।
१) स्वर्ग के सुःख की इच्छा रखनेवालों के लिये यह संसार बाधा के रूप में प्रतिपादित होता हैं।
https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
२) जब सांसारिक भोगों की तृष्णा का त्याग होगा, फिर स्वर्ग के सुखों की इच्छा प्रारम्भ होगी। https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
३) जब स्वर्ग के भोगों की इच्छा का त्याग होगा, तब ही आत्मानुभव प्रपट होगा।https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
४) जो अपने आत्मा का अनुभव करना चाहता है उसे स्वर्ग के सुःख भी बाधाओं के रूप में प्रतिपादित होते है (आत्मानुभवम)।
https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
५) जैसे की हम जानते है स्व-आनंद का त्याग करने पर ही, भगवान के गुणों का अनुभव किया जा सकता है (भगवद अनुभवम)।
https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
६) जब स्व-आनंद की अभिलाषा अलग होगी, तभी भगवत अनुभव की अभिलाषा उत्पन्न होगी। https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
७) जब हमारा हृदय ब्रह्म को परमात्मा जो मात्र ज्ञान से परिपूर्ण है के अतिरिक्त जानेगा, तभी हम भगवान के अन्य अनेकों दिव्य गुणों का आनंद प्राप्त कर पाएंगे। https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
८) जब हम भगवान के अत्यंत सौन्दर्य से दृष्टि को हटाएँगे तभी भगवान के प्रति हमारे दास भाव का विकास होगा। https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
९) जब भगवान के प्रति दास-भाव का स्वाद भी कम होगा तब भागवतों के प्रति दास भाव का विकास होगा।
https://granthams.koyil.org/2013/12/29/virodhi-pariharangal-1-hindi/
१०) जब कर्म, ज्ञान, भक्ति योगों के प्रति उपाय भाव के संभ्रम का नाश होगा, तभी भगवान ही एकमात्र उपाय है इस बात पर विश्वास दृढ़ होगा।
https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
११) जब यह समझ उत्पन्न होगी की उपायान्तरों (भगवान के अतिरिक्त अन्य उपाय) में बहुत कठिन प्रयास, स्व-प्रयास शामिल है और परिणाम फिर भी त्वरित नहीं है, तब जीव का प्रपत्ति (शरणागति) के प्रति पूर्ण भाव जागृत होगा।
https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
१२) जब देवांतरों जैसा अग्नि, इंद्र, आदि के प्रति दासत्व भाव का नाश होगा, तभी भगवान के प्रति सच्चे दासत्व का विकास होगा।
https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
१३) जब हम यह जानते है के देवांतरों के प्रति सेवा का त्याग करना चाहिए, तभी भगवान के प्रति सच्ची सेवा का भाव उत्पन्न होगा जो जीवात्मा का सच्चा स्वभाव है। https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
१४) जब हम स्पष्टता से यह जानेंगे की जीव के द्वारा की गयी भगवान के प्रति शरणागति उपाय नही है, हम यह जान पाएंगे की एकमात्र स्वयं भगवान ही भगवान को पाने का उपाय है। https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
१५) जब शास्त्र निर्धारित गतिविधियों में स्वतन्त्रता पूर्वक संलग्न होगे, साधनान्तर (कर्मा, ज्ञान, भक्ति योग) फलीभूत होंगे। https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
१६) जब स्वयं के उत्थान के लिए की गयी गतिविधियों के प्रति आसक्ति का नाश होगा, तभी स्वयं के लिए सिद्धोपाय ( भगवान ही उपाय है) की स्थापना हो पाएगी। https://granthams.koyil.org/2015/09/18/virodhi-pariharangal-2-hindi/
१७) जब उपाय के मार्ग की बाधाओं का नाश होगा, भगवान ही उपाय है यह दृढ़ता से स्थापित होगा।https://granthams.koyil.org/2015/10/02/virodhi-pariharangal-3-hindi/
१८) जब उपेय (उदेश्य) के मार्ग की बाधाओं का नाश होगा, भगवान के प्रति कैंकर्य ही एकमात्र उपेय (उदेश्य) है यह दृढ़ता से स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2015/10/02/virodhi-pariharangal-3-hindi/
१९) जब उपेय (उदेश्य) के मार्ग की 3 मुख्य बाधाओं का नाश होगा, भगवान के प्रति असीमित, नित्य और अत्यंत आनंदमयी चरम उदश्य की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2015/10/02/virodhi-pariharangal-3-hindi/
२०) जब मुख्य प्रमाणों को समझने की बाधाओं का नाश होगा, हमारा शास्त्रों के प्रति विश्वास स्थापित होगा।https://granthams.koyil.org/2015/11/19/virodhi-pariharangal-4-hindi/
२१) जब जीवात्मा के साथ सदा रहने वाली बाधाओं का नाश होगा, आत्मा का सच्चा स्वरूप स्थापित होगा।https://granthams.koyil.org/2015/11/19/virodhi-pariharangal-4-hindi/
२२) जैसे हीं नित्य बाधा निकाल देते है सांसारिक सुख कि ओर वियोग स्वयं में स्थापित हो जाता है।https://granthams.koyil.org/2015/11/19/virodhi-pariharangal-4-hindi/
२३) जब अस्थायी बाधाओं का नाश होगा, तभी नित्य परमानंद स्थापित होगा।https://granthams.koyil.org/2015/11/19/virodhi-pariharangal-4-hindi/
२४) जब जीवात्मा के सच्चे स्वरूप के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब ही यह ज्ञान प्रकाशित होगा की जीवात्मा भगवान द्वारा भोग्य है।
https://granthams.koyil.org/2015/11/19/virodhi-pariharangal-4-hindi/
२५) जब परमात्मा के सच्चे स्वरूप के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तभी भगवान के प्रति जीवात्मा का पारतंत्रीयम पूर्णतः स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2015/11/20/virodhi-pariharangal-5-hindi/
२६) जब स्वयं के भोग/ आनंद का मनोभाव समाप्त होगा, स्वयं के प्रति आसक्ति का नाश होगा।https://granthams.koyil.org/2015/11/20/virodhi-pariharangal-5-hindi/
२७) जब भगवान के आनंद हेतु गतिविधियों में बाधाओं का नाश होगा, तब नियंत्रित करने की इच्छा के प्रति वैराग्य स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2015/11/20/virodhi-pariharangal-5-hindi/
२८) जब भगवान से मिलन में बाधाओं का नाश होगा, भगवान के श्रीचरणों की प्राप्ति सुलभ है इसकी स्थापना होगी।https://granthams.koyil.org/2015/11/20/virodhi-pariharangal-5-hindi/
२९) जब भगवान से वियोग की बाधाओं का नाश होगा, भगवान के साथ अटूट संग की स्थापना होगी।https://granthams.koyil.org/2015/11/20/virodhi-pariharangal-5-hindi/
३०) जब सांसारिक सुख के प्रति बाधाओं का नाश होगा, अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण/ विजय स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2016/01/18/virodhi-pariharangal-6-hindi/
३१) जब स्वयं की श्रद्धा में बाधाओं का नाश होगा, चरम श्रद्धा की प्राप्ति होगी। https://granthams.koyil.org/2016/01/18/virodhi-pariharangal-6-hindi/
३२) जब प्रवृत्ति में बाधाओं का नाश होगा, भगवान के आनंद हेतु केन्द्रित गतिविधियां स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2016/01/18/virodhi-pariharangal-6-hindi/
३३) जब निवृत्ति में बाधाओं का नाश होगा, ऐसी गतिविधियों (जो स्वयं पर केन्द्रित है) में वैराग्य की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/01/18/virodhi-pariharangal-6-hindi/
३४) जब निंद्रा की बाधाओं का नाश होगा, स्वयं के सच्चे स्वरूप की अनुभूति की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/02/15/virodhi-pariharangal-7-hindi/
३५) जब जाग्रत अवस्था के विषय में बाधाओं का नाश होगा, सत्यता के ज्ञान की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/02/15/virodhi-pariharangal-7-hindi/
३६) जब चलने (मार्ग, गतिविधि, आदि) के विषय में बाधाओं का नाश होगा, संसार में पुनः जन्म न लेने के विषय में ज्ञान होगा। https://granthams.koyil.org/2016/03/05/virodhi-pariharangal-8-hindi/
३७) जब खड़े रहने के विषय में बाधाओं का नाश होगा, परमपद में भगवतों के सानिध्य में खड़े रहने की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/03/05/virodhi-pariharangal-8-hindi/
३८) जब आवश्यक तथ्यों में बाधाओं का नाश होगा, यह शरीर ही दोषरहित अंतिम शरीर (परमपद प्राप्ति के पूर्व का शरीर) है यह स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2016/03/15/virodhi-pariharangal-9-hindi/
३९) जब शरीर की पवित्रता की बाधाओं का नाश होगा, आत्मा की पवित्रता की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/03/15/virodhi-pariharangal-9-hindi/
४०) जब स्नान के विषय में बाधाएँ दूर होगी, विरजा नदी में स्नान (परमपद में जाने के पूर्व) ही उत्तम है यह स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2016/03/15/virodhi-pariharangal-9-hindi/
४१) जब हमारे आचरण में बाधाओं का नाश होगा, पूर्वाचार्यों की आचरण आधारित परम्पराओं की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/03/20/virodhi-pariharangal-10-hindi/
४२) जब पहचान/ विशेषता के प्रति बाधाओं का नाश होगा, वैलक्षणत्व (महानता) की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/05/25/virodhi-pariharangal-11-hindi/
४३) जब स्मरण के विषय में बाधाओं का नाश होगा, ऐसे स्मरण की पवित्रता की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2016/05/31/virodhi-pariharangal-12-hindi/
४४) जब कहने/ गाने की बाधाओं का नाश होगा, वाणी में पवित्रता स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2016/06/18/virodhi-pariharangal-13-hindi/
४५) जब सुनने की बाधाओं का नाश होगा, तब स्वयं में सत- संप्रदाय की पवित्रता (मिलावट रहित परंपरा) की स्थापना होगी।
https://granthams.koyil.org/2016/07/19/virodhi-pariharangal-14-hindi/
४६) जब सेवा के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब यह स्थापित होगा की ऐसी सेवा को भगवान प्रसन्नता से स्वीकार करते है।
https://granthams.koyil.org/2016/08/25/virodhi-pariharangal-15-hindi/
४७) जब समाराधनम (पूजन) के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब यह स्थापित होगा की ऐसी आराधना को भगवान प्रसन्नता से स्वीकार करते है।
https://granthams.koyil.org/2016/10/17/virodhi-pariharangal-16-hindi/
४८) जब आज्ञाकारिता के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब यह स्थापित होगा की ऐसी आज्ञाकारिता को भगवान प्रसन्नता से स्वीकार करते है।
https://granthams.koyil.org/2016/11/15/virodhi-pariharangal-17-hindi/
४९) जब हाथ जोड़कर प्रणाम करने की बाधाओं का नाश होगा, तब भगवान के हृदय की चोरी की जा सकेगी। https://granthams.koyil.org/2017/02/04/virodhi-pariharangal-18-hindi/
५०) जब हमारे समय के उपयोग के विषय में बाधाओं का नाश होगा, समय को सही उपयोग करने से उत्पन्न सच्ची संतुष्टि प्रकट होगी।
https://granthams.koyil.org/2017/03/30/virodhi-pariharangal-19-hindi/
५१) जब धन अर्जन के विषय में बाधाओं का नाश होगा, सात्विक स्वरूप स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2017/06/23/virodhi-pariharangal-20-hindi/
५२) जब गृह/ घर के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब संतों की यात्रा और उनके साथ का महान भाग्य प्राप्त होगा। https://granthams.koyil.org/2017/08/15/virodhi-pariharangal-21-hindi/
५३) जब अपनी जमीन/ भूमि के प्रति बाधाओं का नाश होगा, तब भगवान के प्रति ऐसे भूमि से प्राप्त फलों का समर्पण स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2017/08/15/virodhi-pariharangal-21-hindi/
५४) जब भोजन/ आहार के प्रति बाधाओं का नाश होगा, तब दाता और आनंद प्प्राप्त करने वाला दोनों की प्रसन्नता स्थापित होगी।
https://granthams.koyil.org/2017/09/25/virodhi-pariharangal-22-hindi/
५५) जब भोजन में बाधाओं का नाश होगा, सत्व की उच्च स्थिति की प्राप्ति होगी। https://granthams.koyil.org/2017/12/02/virodhi-pariharangal-23-hindi/
५६) जब तीर्थ के विषय में बाधाओं का नाश होगा, स्वयं का उत्थान स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2017/12/22/virodhi-pariharangal-24-hindi/
५७) जब प्रसाद के विषय में बाधाओं का नाश होगा, स्वयं की पवित्रता स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2018/01/29/virodhi-pariharangal-25-hindi/
५८) जब भाषा/ वाणी में बाधाओं का नाश होगा, सांसरियों से भिन्नता स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2018/03/25/virodhi-pariharangal-26-hindi/
५९) जब संग/ साथ के विषय में बाधाओं का नाश होगा, श्रीवैष्णवों के गुण स्थापित होंगे।नोट- “संग विरोधी ” भाग श्री. उ.वे. वी वी रामानुजम स्वामी की इस पुस्तक में से अनुपस्थित है।
६०) जब सम्बन्धों के विषय में बाधाओं का नाश होगा, भगवान जो नित्य संबंधी है उनके विषय में ज्ञान स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2018/05/16/virodhi-pariharangal-27-hindi/
६१) लगाव के प्रति बाधाएं हट जाती है तो भगवद प्राप्ति स्थापित हो जाता है। https://granthams.koyil.org/2018/06/12/virodhi-pariharangal-28-hindi/
६२) भक्ति के प्रति बाधाएं हट जाती है तो भगवान कि सेवा और भगवान कि खुशी स्थापित हो जाता है। https://granthams.koyil.org/2018/06/12/virodhi-pariharangal-28-hindi/
६३) दासत्व के प्रति बाधाएं हट जाती है तो नित्य स्वामी के प्रति ज्ञान स्थापित हो जाता है। https://granthams.koyil.org/2018/06/13/virodhi-pariharangal-29-hindi/
६४) मित्रता के प्रति बाधाएं हट जाती है तो सभी के एक समान कि भावना स्थापित हो जाता है। https://granthams.koyil.org/2018/07/13/virodhi-pariharangal-30-hindi/
६५) अर्पण करने में बाधाएं हट जाने पर हमारा स्वयं पर अधिकार और भगवान पर अधिकार का ज्ञान स्थापित हो जाता है। https://granthams.koyil.org/2018/08/08/virodhi-pariharangal-31-hindi/
६६) तत्वज्ञान में बाधाएं हट जाने पर आचार्य का हमें स्वीकार करना स्थापित हो जाता है। https://granthams.koyil.org/2018/08/28/virodhi-pariharangal-32-hindi/
६७) जब वर्ण आश्रम के प्रति बाधाओं का नाश होगा, तब भगवान के प्रति सच्ची निष्ठा स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2018/09/16/virodhi-pariharangal-33-hindi/
६८) जब जाति (जन्म) के प्रति बाधाओं का नाश होगा, तब भागवतो के दास होने का ज्ञान स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2018/11/05/virodhi-pariharangal-34-hindi/
६९) जब अविश्वास्य सिद्धांतों के विषय में बाधाएँ समाप्त होगी, तब ऐसे विश्वसनीय दोषरहित सिद्धांतों के प्रति दृढ़ विश्वास स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2018/11/28/virodhi-pariharangal-35-hindi/
७०) जब कुटिल/ असिद्धांतिक नियमों में बाधाओं का नाश होगा… (नोट: यह पंक्ति स्त्रोत में प्राप्त नहीं है)। https://granthams.koyil.org/2018/12/10/virodhi-pariharangal-36-hindi/
७१) जब सिद्धान्त के विषय में बाधाएँ समाप्त होगी, तब अत्यंत आदरणीय प्रमाणों में दृढ़ विश्वास स्थापित होगा।https://granthams.koyil.org/2019/01/05/virodhi-pariharangal-37-hindi/, https://granthams.koyil.org/2019/01/31/virodhi-pariharangal-38-hindi/ और https://granthams.koyil.org/2019/03/02/virodhi-pariharangal-39-hindi/
७२) जब यथार्थ के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब अत्यंत मंगलमय प्रमेय (उद्देश्य- भगवान है) इसका ज्ञान स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2019/03/26/virodhi-pariharangal-40-hindi/, https://granthams.koyil.org/2019/04/13/virodhi-pariharangal-41-hindi/और https://granthams.koyil.org/2019/06/17/virodhi-pariharangal-42-hindi/
७३) जब स्वयं के पुरुषत्व की बाधा का नाश होगा, तब भगवान की दासी के रूप में स्वयं की पहचान स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2019/07/06/virodhi-pariharangal-43-hindi/
७४) जब अंतिम समय के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब हमारा सच्चा स्वरूप शरणागति है यह स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2019/08/30/virodhi-pariharangal-44-hindi/
७५) जब अविश्वास के प्रति बाधाओं का नाश होगा, तब भगवान, भागवत, आचार्य और विशेष शास्त्र ( शास्त्र के वे विशेष भाग जो भागवत धर्म की चर्चा करते है) की दिव्य वाणी में विश्वास स्थापित होगा।https://granthams.koyil.org/2019/08/31/virodhi-pariharangal-45-hindi/
७६) जब संग/ साथ के विषयक में बाधाओं का नाश होगा, भगवान के विषय में ज्ञान स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2019/08/31/virodhi-pariharangal-45-hindi/
७७) जब संतान के विषय में बाधाओं का नाश होगा, वैष्णव संतानों की उत्पत्ति होगी। https://granthams.koyil.org/2019/08/31/virodhi-pariharangal-45-hindi/
७८) जब वर्णाश्रम के विषय में बाधाओं का नाश होगा, आत्मा का वर्ण अर्थात शेषत्व की स्थापना होगी। https://granthams.koyil.org/2019/08/31/virodhi-pariharangal-45-hindi/
७९) जब जप की बाधाओं का नाश होगा, तब द्वय मंत्र में नित्य जप स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2019/08/31/virodhi-pariharangal-45-hindi/
८०) जब पुजा के विषय में बाधाओं का नाश होगा, भगवान के प्रति आराधना स्थापित होगी। https://granthams.koyil.org/2019/08/31/virodhi-pariharangal-45-hindi/
८१) जब स्वामित्व के विषय में बाधाओं का नाश होगा, तब भगवान के परम स्वामित्व के विषय में ज्ञान स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2019/09/21/virodhi-pariharangal-46-hindi/
८२) जब परिहार्य पक्षों में बाधाओं का नाश होगा, सात्विक भोजन, सात्विक पुराणों में श्रद्धा और सात्विक कार्यकलाप स्थापित होगा।
https://granthams.koyil.org/2019/09/21/virodhi-pariharangal-46-hindi/
८३) जब परिहार्य पक्षों में बाधाओं का नाश होगा, इस शरीर के अंत होने पर चरम लक्ष्य स्थापित होगा। https://granthams.koyil.org/2019/09/21/virodhi-pariharangal-46-hindi/
जीवात्मा के लिये यह बाधाएं उसके स्वरूप, सत्ता, स्थिति और प्रवृत्ति से सम्बन्ध है। निरन्तर प्रणव (ओंकार) जो भगवान का स्वभाव और अस्तित्व है का ध्यान करने से जीवात्मा के बाधाओं से संबन्धित स्वभाव और सत्ता को निकाल देते है। निरन्तर नम: का ध्यान करने से जीवात्मा के स्थिति संबन्धित बाधाओं को निकाल देता है। “नारायण” शब्द का निरन्तर ध्यान करने से जो भगवान द्वारा प्रारम्भ किये गये कार्य और जो भगवान द्वारा पूर्णत: आनंद लिये गये कार्य को प्रगट करता है और जीवात्मा के संबन्धित बाधाओं को निकाल देता है। अत: यह समझाया गया है कि सच्चे आचार्य कि सेवा कर, तिरुमन्त्र का अर्थ सिखकर जिसके ३ भाग है, बाधाओं को निकालकर, हमें अपना जीवन व्यतित करना चाहिये। अनुवादक टिपण्णि: तिरुमन्त्र कि महत्वता को यहाँ दर्शाया गया है। तिरुमन्त्र आवश्यक तत्वों का आधार हैं। तिरुमन्त्र को आगे और द्वय महामन्त्र और चरम श्लोक में भी समझाया गया हैं। इन तीनों को एकत्रीत में रहस्यत्रय कहा गया हैं जिन्हें एक आधिकारिक आचार्य से सीखना चाहिये। आचार्य कैंकर्य करना भी एक प्रधानतम महत्व है। इसे श्रीएरुम्बी अप्पा ने पूर्व दिनचर्या के ९वें श्लोक में समझाया हैं कि श्रीवरवरमुनि स्वामीजी निरन्तर द्वय महामन्त्र का अर्थानुसन्धान करते थे। श्रीपिल्लै लोकाचार्य स्वामीजी ने ज़ोर देकर कहा कि हमें द्वय महामन्त्र का उच्चारण करने से पूर्व गुरु परम्परा मन्त्र (अस्मद गुरुभ्यो नम: … श्रीधराय नम:) को कहना चाहिये। अत: एक श्रीवैष्णव होने के कारण हमें तुरंत बाधाओं को मिटाकर / निकालकर एक सुन्दर भव्य जीवन आपने आचार्य के निर्देशानुसार व्यतित करना चाहिये और अन्त में परमपदधाम जाकर वहाँ भगवान लक्ष्मीनारायण कि नित्य सेवा कैंकर्य पूर्ण आनंद से करना चाहिये।
अब श्रीवंगी पुरत्तु नम्बी कि “विरोधी परिहारंगल” पर व्याख्या समाप्त होती हैं जिसे भगवद श्रीरामानुजाचार्य ने कृपा किये हैं।श्री वी.वी.रामानुजम स्वामी
यह दास का बहुत सौभाग्य रहा कि भगवानभगवान श्रीमन्नारायण, आल्वार, आचार्य और अस्मदाचार्य कि कृपा से दास इस अनुवाद कैंकर्य में शामिल रहा। दास श्री उभय वेदान्त वी.वी रामानुजम स्वामी का भी धन्यवाद प्रगट करता हूँ जिन्होंने एक सरल और असरदार अनुवाद बताया हैं (तमील से अंग्रेजी में अनुवाद किया) और श्री सारथी तोताद्री स्वामीजी का (तमील से अंग्रेजी में ग्रंथ का अर्थ बताया) इस गहरे ग्रन्थ के विषय में और अन्य सभी विद्वानों का जिन्होंने मुझे सत सम्प्रदाय के बहुमूल्य तत्वों को सिखाया हैं। और उन सब भागवतों को जिन्होंने मुझे इन पूर्वाचार्य के ग्रन्थों को अनुवाद करने में प्रेरणा देते हैं। विशेषकर श्रीमती भगवती माताजी को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने प्रकाशन और अनुवाद किये हुए को सही करने में बहुत मदद की हैं। अत: अब श्रीरामानुज स्वामीजी के श्रीवंगी पुरत्तु नम्बी को अन्तिम उपदेश विरोधी परिहारंगल का हिन्दी अनुवाद समाप्त हुआ।
-अडियेन केशव रामानुज दासन्
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