श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:
श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र हमारे सत सम्प्रदाय सिद्धान्तों के लिये एक महत्त्वपूर्ण साहित्य और प्राधिकरण हैं। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी मुख्य रूप से श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के इस दिव्य कार्य कि महिमा को प्रगट करने हेतु उपदेशरत्नमाला नामक एक सुन्दर प्रबन्ध कि रचना करते हैं।
- श्रीवरवरमुनि स्वामीजी आऴवारों और श्रीरामानुज स्वामीजी के तिरुनक्षत्र दिन (जन्म नक्षत्र) और तिरुवतार स्थल (जन्म स्थान) के साथ इस प्रबन्ध का प्रारम्भ करते हैं।
- श्रीवरवरमुनि स्वामीजी हमारे सम्प्रदाय में श्रीरामानुज स्वामीजी के लिये विशेष स्थान कि स्थापना करते हैं और सत सम्प्रदाय और विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त के स्थापना के लिये उनका महान योगदान हैं।
- तत्पश्चात उन्होंने श्रीसहस्रगीति के सभी व्याख्यानों और व्याख्यान और उनके लेखक के वैभवों के ऊपर प्रकाश डालते हैं।
- तत्पश्चात वें उस शैली पर प्रकाश डालते हैं जिसमे श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी की ईडु व्याख्यान को आचार्य परम्परा के माध्यम से संरक्षित रखा गया और सिखाया गया।
श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी की कालक्षेप गोष्टी
- फिर वें श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी और श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के वैभवों को दर्शाते हैं।
श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी की कालक्षेप गोष्टी
- इसके पश्चात श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के सार को सबसे सटीक और सुन्दर तरीके से प्रगट किया गया हैं और अपने आचार्य पर सम्पूर्ण निर्भरता के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
- अन्त में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने पूर्वाचार्यों के शब्दों को पूर्ण हृदय से स्वीकार करने और बिना किसी परिवर्तन के उसी उपदेश/अभ्यास करने के महत्व पर प्रकाश डाला।
- पूर्वाचार्यों के शुद्ध निर्देश का पालन करने का परिणाम हमें सर्वोच्च लाभ का आशीर्वाद देने के लिये समझाया गया हैं – वह श्रीरामानुज स्वामीजी के दया के पात्र बनना और स्वयं का उत्थान करना हैं।
- एऱुम्बियप्पा ने उपदेशरत्नमाला के अन्त में एक सुन्दर पाशुर को जोड़ा हैं – यह रेखांकित करते हुए कि जिसके पास श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के तिरुवड़ी का सम्बन्ध हैं वह स्वचालित रूप से और कर्तव्यपरायणता से अमानवन (परमपद के उद्धारकर्ता) द्वारा स्पर्श किया जायेगा और परमपदधाम तक पहुँचने के लिये बिरजा नदी को आसानी से पार करेगा।
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी – श्रीरङ्गम्
इससे हम यह समझ सकते हैं कि उपदेशरत्नमाला का पूर्ण उद्देश श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के तत्त्वों को समझाकर दर्शाना हैं और उसी का वैभव करना हैं।
अब हम श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के इस दिव्य कार्य के कुछ पाशुरों का आनन्द लेंगे:
श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी – श्रीपेरुम्बूतूर
पाशुर – ५३
अन्नपुगऴ् मुडुम्बै अण्णल् उलगासिरियन्
इन्नरुळाल् सेय्दकलै यावैयिलुम् उन्निल्
तिगऴ्वचन बूडणत्तिन् चीर्मै ओन्ऱुक्किल्लै
पुगऴल्ल इव्वार्त्तै मेय्यिप्पोदु
सरल अनुवाद -: पूर्वोक्त वैभववाले ‘मुडुम्बै’ कुल तिलक, श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी द्वारा परम कृपापूर्वक अनुग्रहीत समस्त रहस्य ग्रन्थों के बीच मेम अत्युज्ज्वल श्रीवचनभूषण ग्रन्थ का वैभव दूसरे किसी ग्रन्थ को नहीं। यह वचन मिथ्या प्रशंसा नाही; किन्तु सर्वथा सत्य हैं।
पाशुर – ५४
मुन्नम् कुरवोर् मोठऴिन्द वचनङ्गळ्
तन्नै मिगक्कोण्डु कट्रोर्तम् उयिर्क्कु
मिन्नणियागच्चेर चमैत्तवरे
चीर्वचन बूडणमेन्नुम् पेर् इक्कलैक्कु इट्टार् पिन्
सरल अनुवाद -: श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी ने इस अद्भुत साहित्य को संकलित किया जो हमारे पूर्वाचार्यों के दिव्य शब्दों से बना हैं। महान विद्वानों के लिये यह श्रीवचन भूषण वह आभूषण हैं जो उनकी आत्माओं को सजाता हैं और उन्हें बहुत प्रिय हैं। श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी ने स्वयं इस सुन्दर ग्रन्थ का नाम “श्रीवचन भूषण” रखा जिसका अर्थ वह आभूषण जो पूर्वाचार्यों के दिव्य वाणी से भरा हैं।
पाशुर – ५५
आर वचन बूडणत्तिन् आऴ्पोरुळेल्लाम् अऱिवार्?
आरदु सोल् नेरिल् अनुटिप्पार्?
ओर् ओरुवर् उण्डागिल् अत्तनै काण् उळ्ळमे!
एल्लार्क्कुम् अण्डादन्ऱो अदु
सरल अनुवाद -: कौन श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के समस्त गंभीर अर्थ ठीक समझ सकेगा? और उस शास्त्र जे वचनानुसार कौन आचरण कर सकेगा? अगर कोई एक व्यक्ति भी हो जो इस ग्रन्थ को समझ कर उसका पालन कर सके जो यह सराहनीय होगा क्योंकि यह हर कोई प्राप्त नहीं कर सकता हैं। पिळ्ळैलोकम् जीयर् अपने व्याख्यान में दर्शाते हैं कि केवल श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ऐसे हैं जो इसे समझ सकते हैं और उसके अनुसार जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
पाशुर – ६१
ज्ञानम् अनुट्टानम् इवै नन्ऱागवे उडैयनान
गुरुवै अडैन्दक्काल्
मानिलैत्तीर्! तेनार् कमलत् तिरुमामगळ् कोऴुनन्
ताने वैकुन्दम् तरुम्
सरल अनुवाद -: हे भूतलवासियों! यदि कोई भी मानव ज्ञान व तदनुगुण सदाचार से विभूषित आचार्य का आश्रयण करें, तो मधुपूर्ण कमल में निवास करनेवाली श्रीमहालक्ष्मीजी के प्राणवल्लभ भगवान श्रीमन्नारायण स्वयं उसपर कृपा दिखाते हुए उसे श्रीवैकुंठ को प्रदान करते हैं।
- तनियन्
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- अवतारिका – भाग २
- अवतारिका – भाग ३
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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